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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवान ने पूछा कि शोभा देखने आयी थी कोई बात नहीं। प्रेम से तो लोग आते ही हैं मेरे पास, आकर्षित होते हैं, तुम भी आयी। तुमने मुझको भी देख लिया। अब अंधियारी रात है।यहाँ न मालूम कितने क्रूर जीव-जन्तु हैं, तुम लोगों को नहीं रहना चाहिये और अकेले में किसी को आना नहीं चाहिये, तुम्हारे पति-पुत्र तुम्हें वहाँ याद करते होंगे। घर का नुकसान होता होगा। गायें हैं, तुम्हारा दूध-दही होगा, लौट जाओ और फिर धर्म की बात बतायी। यह सती स्त्रियों का धर्म नहीं कि वे कहीं एकान्त में किसी पर पुरुष के पास जायँ। इसलिये तुम लौट जाओ। सब बातें कह दीं। यह वंचना, यह योगमाया का वंचना का रूप।कहते हैं कि व्रजरमणियों के सामने भी श्रीकृष्ण की योगमाया ने वंचना की चेष्टा की जिससे वे लौट जायें। यह तो चेष्टा नहीं है यह प्रेम का गौरव, प्रेम की महिमा बढ़ाना है कि जगत की किसी वस्तु में कहीं पर उनका त्याग अवशेष नहीं रह गया। यह वंचना थी पर यह वंचना जो है यह व्रजरमणियों के प्रगाढ़ विशुद्ध अनुराग के सामने पराजित हो गयी। फलवती नहीं हो सकी।
श्री गोपियों ने भगवान का आदेश सुनकर के कहा - श्रीकृष्ण! तुम्हारे इस चरण प्रान्त को छोड़ करके एक पद भी लौटे जाने की हम लोगों की शक्ति नहीं है। तुम यदि हमें सेवा प्रदान करने से वंचित करोगे तो बस तुम्हारे चरण का चिन्तन करते-करते इस चरण प्रान्त में ही हमारा जीवन विसर्जित हो जायेगा। उससे यह तो होगा कि मरण काल में तुम्हारे चरण में रहेगीं तो जन्मान्तर में तुम्हारी प्रेयसी बनेंगी ही। यही सही कि मरकर पायेंगे तुमको, सेवाधिकार मिलेगा और इसके सिवा दूसरी गति नहीं। इस प्रकार का अनुराग-विशुद्ध अनुराग। विशुद्ध का अर्थ यही है कि जिसमें किसी प्रकार की चाह की कामना की अशुद्धि न हो। यह गन्दे सांसारिक काम की तो बात ही तुच्छ है। अन्तःकरण की शुद्धि के पहले ही इसका त्याग हो जाता है। जिसमें कोई भी किसी भी प्रकार की कामना का कलंक न रहे, अशुद्धि न रहे वह है विशुद्ध अनुराग।
गोपांगनाओं के विशुद्ध अनुराग और उनकी अनन्य उत्कट सेवाकांक्षा वन्दनीय है। अनन्य उत्कट-अनन्य तो हैं परन्तु उसमें यदि उत्कटता नहीं होती, तीव्रता नहीं होती तो भी देर हो जाती। मिलेगा वही पर आज नहीं फिर कभी। पर वह इतना तीव्र आवेग है कि क्षण भर का वियोग सहन नहीं कर सकता। एक तो विशुद्ध प्रगाढ़ अनुराग और दूसरे अनन्य उत्कट सेवाकांक्षा इसके द्वारा भगवान की योगमाया का दर्प चूर्ण हो गया। इस योगमाया ने सबको ठगा। बड़े-बड़े लोगों की वंचना की कि ले लो मुक्ति, ले लो भुक्ति, तुमको राज्य दे देंगे, जाओ। उपनिषदकाल में नचिकेता यमराज के सामने जब गया तो वह तो जीत गया पर बहुत थोड़े लोग ऐसे होते हैं जो इस योगमाया के सामने विजय प्राप्त करें। हार ही जाते हैं।इस योगमाया की बात सुनकर के योगनिद्रा में नहीं फँसना चाहिये और नींद आवे तो बाहर चले जाना चाहिये।
भगवान की इस रासक्रीड़ा में ‘योगमायामुपाश्रितः’ का अर्थ है कि वंचना की माया को भी लेकर ये आये और इसको ले करके ही रमण की इच्छा की। पर यह योगमाया यहाँ पर पराभूत हो गयी। यज्ञ पत्नियों की भाँति इनकी वंचना यहाँ सफल नहीं हुई। गोपियों के परम प्रेम के वशीभूत होकर के योगमाया वंचना वाली रहने पर भी उन्होंने रमण की इच्छा की।इसके बड़े-बड़े अर्थ होते हैं। फिर कहा है कि भई ‘योगाय श्रीकृष्णेन सह मिलनाय मायः शब्दो यस्या सा योगमाया।’ श्रीकृष्ण के साथ मिलन की व्यवस्था करा देने वाली जो ध्वनि है उसका नाम योगमाया है। इस प्रकार अर्थ करने पर योगमाया का तत्त्व और अर्थ ग्रहण किया जाता है। भगवान की मुरली, वंशी जो है यह योगमाया सिद्ध होती है। यह श्रीकृष्ण की वंशी है न! यह वंशीरव ही श्रीकृष्ण के मिलन का आकर्षण यन्त्र है। इस पर भक्तों की प्रेमियों की बड़ी-बड़ी सुन्दर-सुन्दर कल्पनायें हैं। वंशी के नाद ने किस-किस प्रकार से किस-किसका मन हरण किया, कैसे कैसे किया वंशी ध्वनि ने, इसकी बड़ी मधुर कथा है। इस पर सूरदास के और अष्टछाप वालों के तथा और महात्माओं के हजारों-हजारों पद हैं, अनुभव के-वंशीध्वनि पर।
प्रातःकाल भगवान क्या करते हैं, जब छोटे बच्चे थे तो उनके सखा अपनी अपनी माताओं के पास सोये रहते हैं, माताएँ हाथ फेरती रहती हैं। बच्चे सब सोयें तो इनको चैन पड़ती नहीं। देर हो जाय। कभीं बछड़ों को लेकर जाय कोई और अकेले जाने में मजा आवे नहीं इनको। हैं अकेले पर यहाँ बिना संगी के मजा आवे नहीं। तो यह क्या करते हैं। मैया से कहते हैं मैया जरा ठहर जा, मैया कहती कलेवा करके जाना लेकिन ये कहते जरा ठहर जा। अभी आता हूँ तो घर के बाहर दरवाजे पर जाकर जोर से मुरली फूँकते हैं। जहाँ मुरली की ध्वनि जाती है। सुबल, सुदाम सब के सब दौड़ते आते हैं कि कन्हैया की मुरली बज गयी। तो बस, कन्हैया की मुरली सुनते ही ये सुबल, सुदाम, श्रीदाम, स्तोक कृष्ण और न जाने कौन-कौन छोटे-बड़े भैया लोग थे सब के सब पड़ते हैं। तो मुरली ध्वनि क्या करती है? जगाती है और मिलन की आकांक्षा तीव्र करती है। क्या करती है? कृष्ण की तरफ दौड़ा देती है और क्या करती है? जल्दी पहुँचा देती है। तो भई! भगवान की मुरली ध्वनि कोई सुन पड़े। मुरली माने उनका आवाहन यन्त्र की ध्वनि-बुलावे, उनके बुलाने के बाद कोई ठहर नहीं सकता। चैतन्य को बुलाया, आधी रात को बेचारे गंगा पार होकर के भागे।बुद्ध को बुलाया, सिद्धार्थ को, एक महीने का बच्चा और लड़की-बहू घर में छोड़ के निकल गये। तो उनके बुलाने पर उनकी वंशी ध्वनि सुनने पर कोई घर में रह सके यह सम्भव नहीं और हम तो कहते हैं कि हमें वंशी ध्वनि कभी सुना मत देना। यह कहते हैं माया वंचना दूर रहे। वंशीरव के सुनने से सबकी जागृति हो जाती है; श्रीकृष्ण की ओर जाने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो जाती है। यह वंशी ध्वनि सुनने के लिये कानों को तैयार रखना चाहिये।
क्रमश:
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