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राधा नयन भर 1

भाग- 1 देखि लै राधा नयन भरि कै.... अरी सखी, आज तैनें प्रातःकाल स्यामसुंदर के दरसन कियै हतै,कैसौ सुंदर सिंगार हौ? हाँ सखी दरसन तो करे हे। मैं तौ वा मनमोहिनी मूर्ति के दरसन करि कैं एकटक चित्र लिखितसी रहि गई।स्याम तन पै पीताबंर कैसी सौभा पाय रह्यौ हौ हम सब व्रज जुबतिन के मनन है मोहि रह्यौ हौ। बलदार अलकावली गुरुजनन की लाज हटाय रही ही। अरी सखी, नटनागर बिहारी श्रीकृष्णचंद्र की वह नवकिसोर अवस्था, वह मुखारबिन्द, वह करुणा, वे लीलाकटाच्छ, वह सौंदर्य, वह मुसकान माधुरी देवतान में हुँ दुर्लभ है। आवरण के पीछै श्रीजी सुनतीं हैं सखियों की समस्त वार्ता श्रीजी- अहाहा! यह मधुर नाम मोय कौन नें सुनायौ? कितनो मधुर है? कृष्ण...कृष्ण...कृष्ण... ‘कृष्ण’ ये द्वै आखर जिह्वा बोलै है तौ अनन्त जिह्वान की आकांक्षा उदय करावै हैं। ‘कृष्ण’ ये द्वै वर्ण कर्णन में प्रबेस करत ही दस कोटि कर्णन की लालसा करावै हैं। ‘कृष्ण’ ये द्वै आखर अंतःकरण में प्रकट होत ही समस्त इंद्रियन की चेष्टान पै विजय करि कैं चित्तै तन्मय करि देय हैं। न जें बिधाता नें कितेक अमृत के पूर सौं ये द्वै अच्छर ‘कृष्ण’ की रचना करी है। अहा...कृष्ण...कृ