भाग 2 अध्याय 1

अथ श्रीगीतगोविन्दम्
अथ प्रथम: सर्ग:
अथ द्वितीय: प्रबन्ध:
वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलमुद्विभ्रते दैत्यं दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते।
पौलस्त्यं जयते हवं कलयते कारुण्यमातन्वते म्लेच्छान् मूर्च्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नम:।।१।।
हे भगवान् ! आपने मीन रूप धारण कर प्रलय के जल से वेद शास्त्र की रक्षा की, कूर्म रूप धारण कर पृथ्वी को पीठ पर वहन किया, वाराहरूप धारण कर निज दन्तों से पृथ्वी को पानी में से उठाया, नरसिंह रूप धारण करके हिरण्यकशिपु का संहार किया, वामनरूप धारण कर बलिराज कि छलन किया, परशुराम रूप धारण करके क्षत्रियों का संहार किया, राम रूप धारण करके रावण का हनन किया, हलायुध रूप धारण करके यमुना को खींचा, बुद्ध रूप धारण करके अहिंसा धर्म को प्रकाशित किया और अब कल्कि रूप धारण करके महाभ्रष्ट म्लेच्छ लोगों का विनाश करेंगे। अत: दशाविधरूप धारण करने वाले प्रभु ! आपके चरण कमलों में मेरा नित्य प्रति साष्टांग दण्डवत् प्रणाम है।। १।।
श्रितकमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल ऐ
कलितललितवनमाल जय जय देव हरे।। ध्रुव।। १।।
हे भगवान् ! आप लक्ष्मी देवी के सुन्दर वक्षस्थल से क्रीडा करते हैं, आप कर्णाभूषण से शोभायमान हैं, आपके कण्ठ में वनमाला अत्यन्त सुशोभित हो रही है, हे कमलाकान्त ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो।।१।।
दिनमणिमण्डल मण्डन भवखण्डन ए।
मुनिजनमानसहंस जय जय देव हरे।।
हे नारायण ! सूर्यमण्डल के भूषण स्वरूप समस्त लोगों को गति, भक्त्ति और मुक्त्ति देने वाले आप ही हो। सन्त-भक्त्तजनों के हृदय में हंस सदृश विराजमान रहते हो। इससे हे भगवान् ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो।। २।।
कालियविषधरगंजन जनरंजन ए।
यदुकुलनलिनदिनेश जय जय देव हरे।। ३।।
हे भगवन् ! आपने कालिय नाग का दमन किया था और आप हीभक्त्तजनो की कामना को परिपूर्ण करने वाले हैं। यदुवंश रूप कमल के प्रकाशक सूर्य स्वरूप आप ही हैं।
है यदुकुल प्रकाशक आपकी जय हो, जय हो, जय हो।। ३।।
मधुमुरनरकविनाशन गरुडासन ए।
सुरकुलकेलिनिदान जय जय देव हरे
हे भगवन् ! आपने मधु नामक दैत्य और मुर नामक असुर का विनाश किया था, नरक स्थित पापियों को आप मुक्त्तिपद देते हैं। गरुड जिनके वाहन हैं, ऐसे गरुडासन भगवान् ! आपकी जय हो,जय हो,जय हो।। ४।।
अमलकमलदललोचन भवमोचन ए।
त्रिभुवनभवननिधान जय जय देव हरे
है भगवन् ! आपके नेत्र कमल के समान हैं, भवपाश से छुडाने वाले आप ही हैं, है नारायण ! आपके असंख्य नाम हैं, जिन नामों के उच्चारण मात्र से भक्त्तिप्रधान जीवों का हृदय शुद्ध होता है। हे भक्त्तिप्रद !
आपकी जय हो,जय हो,जय हो।। ५।।
जनकसुतिकृतभूषण जितदूषण ए।
समरशमितदशकंठ जय जय देव हरे
हे भगवन् ! आपने ही मिथलेश नन्दिनी सीता का अंग विभूषित किया था और आप ही ने निर्दयी पापी दूषण और पाप रूप लंकापति रावण का विध्वंस किया, हे परम
पुरुष ! आपकी जय हो, जय हो,
जय हो।। ६।।
अभिनवजलधरसुन्दर धृतमन्दर ए।
श्रीमुखचन्द्रचकोर जय जय देव हरे।।
हे भगवन् ! आपका स्वरूप नूतन मेघ के तुल्य है, गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठिका पर धारण करके ब्रजपुरी की रक्षा आपने की। हे लक्ष्मी के मुख रूप चन्द्रमा के चकोर आपका नाम धन्य है, हे परमेश ! आपकी जय हो, जय हो जय हो।। ७।।
तव चरणं प्रणता वयमिती भावय ए।
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे।
हे भगवन् ! हम लोग आपके चरण- कमल में साष्टांग प्रणाम करते हैं। आप ही हम लोगों का का मंगल करें, हे दीनदयाल ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो।। ८।।
श्रीजयदेवकवेरिदं कुरुते मुदम् ए।
मंगलमुज्जवलगीतं जय जय देव हरे।
श्री कविवर जयदेव का यह उज्जवल गीत समस्त संसारी लोगों को मंगलप्रद हो। अत: हे परब्रह्म!आपकी जय हो, जय हो, जय हो।। ९।।
इति श्रीगीतगोविन्दे द्वितीय: प्रबन्ध:२

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