भाग 26 अध्याय 11
अथ श्रीगीतगोविन्दम्
अथ एकादशः सर्गः।~द्वितीयः ~
सा मां द्रक्ष्यति वक्ष्यति स्मारकथां प्रत्यग्ङमालिग्ङनैः प्रीतिं यास्यति रंस्यते सखि समागत्येति चिन्ताकुलैः।
स त्वं पश्यति वेपते पुलकयत्यानन्दति स्विद्यति प्रत्यद्गच्छति मूर्छति स्थिरतमः पुञ्जे निकुञ्जे प्रियः।। २।।
हे रिधिके ! अत्यन्त अन्धकारमय लताकुञ्ज में विराजमान आपके प्रिय श्रीकृष्ण चिन्ताकुल होकर सोचते हैं- वे राधा मुझे देखेंगी, मेरे साथ मीठी-मीठी प्रेमपूर्ण बातें करेंगी, हर एक अंग का आलिंगन कर प्रसन्न हो जायेंगी, तदनन्तर मेरे साथ रतिक्रीडा करेंगी, इस तरह अनेक प्रकार के मनोरथों के मन में उत्पन्न होते हुए वे श्रीकृष्ण आपको ध्यान में देखते हैं, देखकर काँप जाते हैं, पुलकित हो जाते हैं, स्वाप्निक समागम का सुख अनुभव करते हैं, रतिक्रम से पसीने-पसीने हो जाते हैं। तुम्हारी भावना से उठकर खड़े होने पर तुमको न पाकर मूर्छित हो जाते हैं।। २।।
अक्ष्णोर्निक्षपकज्जलं श्रवणयोस्तापिच्छगुच्छावलीं मूर्ध्नि श्यामसरोजदामकुचयोः कस्तूरिकापत्रकम्।
धूर्तिनामभिसारसत्वहृदां विष्वङ्निकुञ्जे सखि ! ध्वान्तं नीलनिचोलचारुसुदृशां प्रत्यग्ङमालिग्ङति।। ३।।
हे सखी राधे ! आँखों में काजल, कानों में मोरपंख के गुच्छे, सिर में नील कमलों की माला और कुचों पर कस्तूरी के रस से पत्र रचना आदि द्वारा अपने को सजा कर श्रीकृष्ण के पास चलें, प्रायः अभिसार के लिये अत्यन्त आतुर धूर्त नायिकाओं को संकेत स्थान उपयुक्त आभूषण ही है, क्योंकि निकुञ्ज में काले वस्त्र से सुन्दर नायिकाओं को फैला हुआ गाढ़ा अन्धकार उनके सर्वांग का आलिंगन करता है।। ३।।
काश्मीर-गौरवपुषामभिसारकाणामाबद्ध-रेखमभितो मणिमञ्जरीभिः।
एतत्तमालदलनीलतमं तमिस्रं तत्प्रेमहेमनिकषोपलतां तनोति।। ४।।
हे प्रिये ! केसर की कान्ति के समान शरीर वाली अभिसारकाओं के लिये मणिमञ्जरियों से चारों ओर रेखा किया हुआ, तमाल पत्रों के समान अत्यन्त नीले, यह अन्धकार प्रेम रूपी सुवर्ण की कसौटी है। जैसे सुनार सुवर्ण की परीक्षा कसौटी पर करता है, उसी तरह प्रेमी-प्रेमिकाओं की परीक्षा अन्धेरे में करते हैं।। ४।।
हारावलीतरलकाञ्चनकाञ्चिदामकेयूर-कक्ङणमणिद्युतिदीपितस्य।
द्वारे निकुञ्जनिलयस्य हरिं निरीक्ष्य व्रीडावतीमथ सखी निजगाद् राधिम्।। ५।।
उसके अनन्तर मालाओं, चमकदार सुवर्ण की करधनी, बाजूबन्द और कक्ङण इदि में लगे हुए मणियों की कान्ति से जगमगाते हुए लति गृह के द्वार पर श्रीकृष्ण को देखकर लज्जावती श्रीराधा से एक सखी बोली।। ५।।
वराटिरागे अडवताले अष्टपदी।। २१।।
मञ्जुरकुञ्जतलकेलिसदने।
विलस रतिरभसहसितवदने।।
प्रविश राधे ! माधवसमीपमिह।। ध्रुव०।। १।।
क्रीडा के उत्साह से प्रसन्न मुख वाली हे राधिके ! अति सुन्दर लताकुञ्ज रुप क्रीडागृह में जाइये और माधव समीप जाकर उनके सिथ रमण कीजिये।। १।।
नवभवदशोकदलशयनसारे।
विलस कुचकलशतरलहारे।। प्रविश०।। २।।
कलश के समान स्तनों पर चञ्चल मुक्ताहार धारण करने वाली हे राधे ! नवीन अशोक के पत्तों से रचित शय्या पर श्रीकृष्ण के साथ रमण कीजिये।। २।।
कुसुमचयरचितशुचिवासगेहे।
विलस कुसुमसुकुमारदेहे।। प्रविश०।। ३।।
फूलों के समान सुकुमार शरीर वाली हे राधे ! फूलों के समूह से निर्मित इस पवित्र शयनगृह में जाइये और श्रीकृष्ण के साथ आमोद-प्रमोद कीजिये।। ३।।
मृदु चलमलयपवनसुरभिशीते।
विलस रसविललितगीते।। प्रविश०।। ४।।
हे श्रंगार रस से ओतप्रोत गीत गाने वाली राधे ! मलय पर्वत की वायु से सुगन्धित और शीतल इस प्रेम मन्दिर में जाकर श्रीकृष्ण के साथ बिहार कीजिये।। ४।।
विततबहुवल्लिनवपल्लवघने।
विलस चिरमिलितपीनजघने।। प्रविश०।। ५।।
हे चिर काल से मिली हुई और मोटी-मोटी जाँघों वाली राधे ! फैली हुई नाना भाँति की लताओं के कोमल पत्तों के कुञ्ज में जाकर अपने प्यारे श्रीकृष्ण की प्रेमिका बनिये।। ५।।
मधुमुदितमधुपकुलकलितरावे।
विलस दशनरभसरसभावे।। प्रविश०।। ६।।
हे कामदेव के उद्वेग से उत्पन्न श्रंगार रस में अनुराग रखने वाली राधे ! पुष्प रस के आस्वाद से आनन्द पूर्वक झंकार करने वाले,भौरों के झुण्ड वाले, लता भवन में जाकर प्रेम रस चखिये।। ६।।
मधुरतरपिकनिकरनिनदमुखरे।
विलस दशनरुचिरुचिरशिखरे।। प्रविश०।। ७।।
हे दाँतों की चमक-दमक से शोभायमान शिखर मणिवाली राधे ! अत्यन्त मधुर कोकिलाओं की वाणी से शब्दायमान लतागृह में प्रवेश कर श्रीकृष्ण के साथ बिहार कीजिये।। ७।।
विहितपद्मावतीसुखसमाजे।
कुरु मुरारे ! मग्ङलशतानि।।
भणितजयदेवकविराजराजे।। प्रविश०।। ८।।
हे श्रीकृष्णचन्द्र ! पद्मावती के सुख समूह का निर्माण करने वाले कविराजों मे जयदेव कवि के लिये सैंकड़ों प्रकार के मगल का विधान करें।। ८।।
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