भाग 16अध्याय 6

अथ श्रीगीतगोविन्दम्
अथ  षष्ठः  सर्गः। ~द्वितीयः
विपुलपुलकपालिः स्फीतसीत्कारमन्तर्जनितजडिम काकुव्याकुलं व्याहरन्ती ।
तव कितव विधायामन्दकन्दर्पचिन्तां रसजलनिधिमग्रा ध्यानलग्ना मृगाक्षी।। १।।
हे धूर्त ! आपका ध्यान करने वाली और श्रग्ङारादि रस रूपी समुद्र में डुबकी लगाने वाली वह मृगनयनी राधा, कभी (ध्यान करते समय) अत्यधिक काम की चिन्ता से आपके शरीर का स्पर्श हुआ ऐसा समझ रोमाञ्चित हो उठती हैं, आपने अधर चुम्बन किया ऐसा समझ कर सी-सी करती हैं कभी जड़त्व के प्रादुर्भाव होने से वह व्याकुल होने लगती हैं।। १।।
अंगेष्वाभरणं करोति बहुशः पत्रे पि संचारिणि प्राप्तां त्वां परिशक्ङते वितनुते शय्यां चिरं ध्यायति।
इत्याकल्पविकल्पतल्परचनासंकल्पलीलाशत-व्यासक्त्तापि विना त्वया वरतनुर्नैषा निशां नेष्यति।। २।।
हे कृष्ण ! पत्रों की खड़खड़ाहट सुनकर वह राधा अपने अंगों में आभूषणों को धारण करने लगती हैं, ऐसा समझ कर कि आप आ रहे हैं, शय्या को सजाने लगती हैं एवं ध्यानमग्न होकर अनेकों विचारों को करने लगती हैं, परन्तु बिना आपके उनकी रात कटती नहीं।। २।।
किं विश्राम्यसि कृष्णभोगिभवने भाडीरभूमिरुहि भ्रातर्यासि न दृष्टिगोचरमितः सानन्दनन्दास्पदम्।। ३।।
राधाया वचनं तदध्वगमुखान्नन्दान्तिके गोपतो गोविन्दस्य जयन्ति सायमतिथिप्राशस्त्यगर्भा गिरः।। ३।।
इति गीतगोविन्दे वासकसज्जावर्णने सोत्कण्ठधन्यबैकुण्ठो नाम षष्ठः सर्गः
।। ६।।
हे पथिक ! कृष्ण-सर्प के भवन रूप इस भाण्डीर वृक्ष के नीचे विश्राम करते हो ? यहाँ तो कृष्ण-सर्प का निवास स्थान है। क्या आपको नन्दबाबा का आनन्द भवन दिखलाई नहीं पड़ता है ? इस प्रकार राधा द्वारा कहे हुए वचनों को पथिक-मुख से सुनकर नन्दबाबा के सम्मुख अपनी कलई खुलने के भय से उन वचनों को छिपाने वाले श्रीकृष्ण ने पथिक से कहा~ "आइये आपका स्वागत है" इत्यादि कहकर बात उड़ा दी। इस तरह श्रीकृष्ण से कथित वाणी जय युक्त्त हो।। ३।।
इस प्रकार से गीतगोविन्द काव्य सोत्कण्ठबैकुण्ठ नामक षष्ठ सर्ग पूर्ण हुआ।

Comments

Popular posts from this blog

भाग 1 अध्याय 1

भाग 2 अध्याय 1

65